۞चैथी सदी ई.पू. में मगध में 12 वर्षों तक
भयंकर अकाल पड़ा जिससे भद्रबाहु अपने शिष्यों के साथ कर्नाटक चले गये और स्थलबाहु
अपने शिष्यों के साथ मगध में ही रहा। भद्रबाहु के लौटने तक मगध के भिक्षुओं के
जीवनशैली में आया बदलाव विभाजन का कारण बना।
۞ मगध में निवास करने वाले जैन भिक्षु स्थलबाहु
के नेतृत्व में श्वेताम्बर कहलाये। ये श्वेत वस्त्रा धारण करते थे।
۞ जैन आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन
भिक्षु दिगम्बर कहलाये। ये अपने को शु) बताते थे और नग्न रहने में विश्वास करते
थे।
۞ पुजेरा, ढुंढिया आदि श्वेताम्बर के उपसंप्रदाय थे।
۞ बीस पंथी, तेरापंथी तथा तारणपंथी
दिगम्र के उपसम्प्रदाय थे।
जैन धर्म का प्रसार:
۞ जेन धर्म को प्रश्रय देने वाले राजाओं मेंउदयन, बिम्बिसार, अजातशत्रा۞, चन्द्रगुप्त
मौर्य,
बिन्दुसार
एवं खारवेल प्रमुख हैं।
۞ जैन धर्म के प्रधान केन्द्र के रूप में मथुरा
एवं उज्जैन का उल्लेख मिलता है।
۞ पश्चिम भारत के गंग, कदंब, चालुक्य तथा
राष्ट्रकूट शासकों द्वारा जैनधर्म को संरक्षण प्रदान किया गया था।
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक संत की भांति कर्नाटक
में इस धर्म का प्रचार किया।
۞ पुलकेशिन द्वितीय का एक आश्रित राजा रविकीर्ति
ने एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया था।
۞ राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष स्याद्वाद का
अनुयायी था।
۞ गुजरात के चालुक्य नरेश कुमारपाल और जयसिंह
सिद्धराज दोनेां ही जैन धर्म के अंतिम महान संरक्षक थे।
जैन
साहित्य:
۞ जैन धर्म के धार्मिक गंथ अर्धमागधी भाषा में
लिखे गये। जैन साहित्य का संकलन बल्लभी में ईसा की छठी सदी में हुआ था।
۞ जैनों ने प्राकृत भाषा में विशेषकर शौरसेनी
प्राकृत में अनेक ग्रंथों की रचना की। कन्नड़ के विकास में भी जैनों का योगदान
सराहनीय है।
۞ जैन साहित्य को आगम कहा जाता है जिसमें 12 अंग, 12 उपांग, प्रकीर्ण, छेद्सूत्रा
आदि सम्मिलित हैं।
۞ श्वेताम्बरों के अनुसार महावीर के मौलिक
सिद्धान्त 14
प्राचीन ग्रंथ है जिन्हें श्पूर्वश् कहा जाता है।
۞ कर्नाटक में जैन मठों को श्बसदिश् कहा गया।
۞ जैनियों के स्थापत्य कला में हाथीगुम्फा मंदिर, दिलवाड़ा
मंदिर,
माउंट
आबू,
खजुराहो
में स्थित पाश्र्वनाथ, आदिनाथ
मंदिर प्रमुख हैं।