आर्थिक
स्थिति:
۞ कृषि तथा विभिन्न शिल्पों के विकास के कारण
जीवन स्थाई हो गया हालांकि पशुपालन अभी भी व्यापक पैमाने पर जारी था परन्तु अब
खेती उनका मुख्य धंधा बन गया।
۞ शतपथ ब्राह्मण में हल संबंधी अनुष्ठान का
लम्बा वर्णन आया है।
۞ अथर्ववेद के अनुसार पृथुवैन्य ने सर्वप्रथम हल
और कृषि को जन्म दिया।
۞ लोहे का उपयोग पहले शस्त्रा निर्माण तथा बाद
में कृषि यंत्रों के निर्माण में किया गया।
۞ भूमि पर सामूहिक स्वामित्व का प्रचलन था।
۞ काष्ठक संहिता में 24 बैलों द्वारा
जुताई की चर्चा है।
۞ अथर्ववेद में सिंचाई के साधन के रूप में
वर्णाकूप एवं नहर का उल्लेख है।
۞ वाजसनेयी संहिता में गोधूम (गेहूं) का
उल्लेख है।
۞ छांदोग्य उपनिषद् में एक दुर्भिक्ष का उल्लेख
है।
۞ चावल को वैदिक ग्रंथों में ब्रीहि कहा गया है।
यजुर्वेद में चावल के पांच किस्मों की चर्चा महाब्रीहि, कृष्णब्रीहि, शुक्लब्रीहि, आशुधान्य और
हायन की चर्चा है। अथर्ववेद में चावल के दो किस्मों ब्रीहि एवं तंदुल की चर्चा है।
۞ शतपथ ब्राह्मण में कृषि की चारों
क्रियाओं-जुताई, बुवाई, कटाई एवं
मड़ाई का उल्लेख हुआ है।
۞ गेहूं, चावल, जौ, तिल, श्यामाक, उड़द, शारिशाका, दाल, गन्ना एवं शण
इस काल की मुख्य फसल थी।
۞ यजुर्वेद में हल को श्सीरश् कहा गया है।
۞ वर्ष में दो फसलें उगाई जाती थी। खाद के रूप
में गोबर (शकृत
ओर करिषु) का प्रयोग किया जाता था।
۞ गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, भैंस, बकरी, गधा, ऊंट, सूअर आदि
मुख्य पशु थे।
۞ अथर्ववेद के एक सूक्त में गाय, बैल और घोड़ों
की प्राप्ति के लिए इन्द्र से प्रार्थना की गयी है।
۞ यजुर्वेद से हमें हाथियों के पालने और उसके
देखभाल करने को एक व्यवसाय होने की सूचना मिलती है जिसे श्हस्तिपश् कहा जाता था।
विवाह के प्रकार
1ण् ब्रह्म विवाह दहेज
सहित उसी श्रेणी के पुरुष के साथ
2ण् दैव विवाह यज्ञकत्र्ता
पुरोहित के साथ
3ण् आर्य विवाह वधु
के संरक्षक को एक जोड़ी गाय या बैल देना होता था।
4ण् प्रजापत्य बिना
दहेज का योग्य वर से विवाह
5ण् असुर विवाह इस
विवाह में कन्या को उसकेे पिता से क्रय कर लिया जाता था।
6ण् गन्धर्व विवाह इसमें
कन्या तथा वर परस्पर प्रेम विवाह करते थे। इसमें माता-पिता की अनुमति नहीं ली जाती
थी और यह गुप्त रूप से किया जाता था।
7ण् राक्षस विवाह कन्या
का अपहरण करके उसकी इच्छा के विरू) सम्पन्न विवाह था।
8ण् पैशाच विवाह इसमें
कन्या को नशायुक्त पदार्थ पिलाकर या सोयी हुई कन्या से अद्धविक्षित अवस्था में
शारीरिक संबंध स्थापित किया जाता था।
۞ बड़े बैल को श्महोक्षश् कहा जाता था।
۞ ऐतरेय ब्राह्मण में गधे को अश्विन देवताओं की
गाड़ी खींचते हुए दिखाया गया है।
۞ यजुवे्रद में मछुआरे का उल्लेख है।
۞ अथर्ववेद में ऊंट गाड़ी तथा शतपथ ब्राह्मण में
सूअर का उल्लेख है।
۞ उन्नत अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए अधिशेष
उत्पादन नहीं होता था क्योंकि कृषि घर के सदस्यों द्वारा होता था। अभी तक दासों को
कृषि कार्य में नहीं लगाया गया था।
۞ धातुकर्मी, मछुआरे, घोषी, कुल्लाल, भिषक आदि
पेशों के विकास की जानकारी वाजसनेयी संहिता से मिलती है। इसके अलावा इस काल में
स्वर्णकार, रथकार, लुहार, गायक, नर्तक सूत, व्याध, गोप, कुंभकार, वैद्य, ज्योतिषी, नाई आदि
व्यवसायियों का उल्लेख मिलता है।
۞ कपास का उल्लेख नहीं हुआ है इसके जगह उर्णा (ऊन) शब्द का
उल्लेख कई बार आया है।
۞ कपड़े की बुनाई कार्य में और निखार आया तथा
इसमें रंगसाजी भी जुड़ गया। वस्त्रों की बुनाई एवं उन पर कढ़ाई का काम प्रायः
औरतें ही करती थीं। ऐसी औरतों को श्पेशस्कारीश् कहा जाता था।
۞ लोहे के लिए वाजसनेयी संहिता में श्श्याम
अयसश् तथा जैमिनी ब्राह्मण में श्कृष्ण अयसश् का प्रयोग हुआ है।
۞ अथर्ववेद में रजत (चांदी) का
उल्लेख हुआ है।
۞ आर्य लोग तांबे के अतिरिक्त सोना, चांदी, सीसा, टिन, पीतल, रांगा आदि
धातुओं से परिचित हो चुके थे।
۞ व्यावसायिक संगठन के लिए ऐतरेय ब्राह्मण में
श्श्रेष्ठीश् तथा वाजसनेयी संहिता में श्गणश् एवं श्गणपतिश् शब्द का उल्लेख हुआ
हैं।
۞ निष्क, शतमान, पाद, कृष्णल तथा
रति का माप की भिन्न-भिन्न इकाइयां थीं। रतिका को तुलाबीज भी कहा गया है। रत्ती
त्र 18 ग्राम होता
था। कृष्णल 1
रत्ती या 1ण्8 ग्रेन के
बराबर होता था।
۞ मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित था।
सिक्कों का नियमित प्रयोग नहीं होता था।
۞ तैतरीय आरण्यक में नगर का प्रथम बार उल्लेख
हुआ है।
۞ शतपथ ब्राह्मण में पूर्वी तथा पश्चिी समुद्रों
का उल्लेख हुआ है। व्यापार जल एवं थल दोनों मार्ग से होता था।
۞ शतपथ ब्राह्मण में पहली बार सूदखोरी एवं महाजन
की चर्चा मिलती है। ऋण को श्कुसिदश् तथा सूदखोरों को श्कुसिदिनश् कहा गया है।
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