शैव
धर्म:
۞ शैव धर्म का इतिहास भारत में अत्यंत प्राचीन
है। इस धर्म के अनुयायियों के इष्टदेव भगवान श्शिवश् थे। हड़प्पा काल में शिव की
पूजा पशुपति महादेव के रूप में तथा उत्तर वैदिककाल में शिव की रुद्र के रूप में की
जाती थी। मेगास्थनीज ने शिव के लिए डायोनिसस शब्द का उल्लेख किया है।
۞ श्वेताश्वर उपनिषद में शिव का उल्लेख आया है।
۞ पतंजलि ने भी अपने भाष्य में शिव और स्कंद की
प्रतिमाओं का उल्लेख किया है।
۞ एक सम्प्रदाय के रूप में शैव धर्म प्रारम्भ
शुंग एवं सातवाहनों के काल में हुआ। कुषाण काल में शैव धर्म का विकास हुआ एवं
गुप्तकाल में यह चरम सीमा पर पहुंचा। लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण
में मिलता है।
۞ कुषाणकालीन शासक विम कैडफिसस स्वयं को महेश्वर
कहता था तथा उसके सिक्कों पर शिव को अपनी पत्नी अम्बा या दुर्गा के साथ दिखाया गया
है।
۞ स्कंदगुप्त के बैल के आकार के सिक्के उसकी शैव
धर्म में आस्था के प्रमाण हैं।
۞ अश्वघोष तथा कालिदास शिवोपासक थे।
۞ कुमारगुप्त प्रथम के सिक्कों में मयूर पर
आरूढ़ कार्तिकेय की प्रतिमा अंकित है।
۞ दक्षिण में चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं
चोलों के समय शैव धर्म उन्नति की ओर अग्रसर हुआ। एलोरा के प्रसि) कैलाश मंदिर का
निर्माण राष्ट्रकूटों ने किया।
۞ संगम साहित्य में शिव का वर्णन है।
शिलप्पदिकारक तथा मणिमेखलै में भी शैव दर्शन का जिक्र है।
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