तीन सिर और एक तलवार
तारीख : १८ जून १५७६
स्थान : हल्दीघाटी, उदयपुर (राजस्थान)
युद्ध : मुग़ल बनाम राजपूत
परिस्थिति
हल्दीघाटी में अकबर की विशाल सेना ने महाराणा प्रताप पर हमला कर दिया। राजपूत सेना मुग़ल सेना के मुकाबले बहुत कम थी जिसका नेतृत्व मानसिंह कर रहा था।
महाराणा की आंखें उस गद्दार को ढूंढ़
रहीं थीं जिसने मातृभूमि से गद्दारी करके हमलावरों का साथ दिया था।
आगे क्या हुआ?
महाराणा ने गद्दार को कुछ ही दूरी पर ढूंढ़ लिया। वह एक हाथी पर बैठा हुआ था जिसको सैकड़ों मुग़ल योद्धाओं ने घेर रखा था। एक शेर और उसके शिकार के बीच में अनगिनत जिहादी हरे झंडे लेकर अल्ला-हु-अकबर का शोर मचा रहे थे। अल्लाहु-अकबर और ज्यादा तेज़ हो गया।
महाराणा को मानसिंह तक पहुंचने के लिए बीच का रास्ता साफ़ करना जरूरी था।
महाराणा ने दूसरी तलवार निकाली।
उनकी छाती पर बख्तर बंद था।
उनकी पीठ पर ढाल थी।
दोनों हाथों में अब तलवार थी।
अकबर के जिहादी पहली बार हिन्दू तलवार की ताकत को देख रहे थे।
और तब..
जिहादी सिर कटकर लुढ़कने लगे। एक बनाम सैकड़ों। हिन्दू योद्धा बनाम जिहादी
आक्रमणकारी। दो मिनट में सैंकड़ों जिहादी झंडे, सिर, हाथ और पैर जमीन पर छितरा गए और चेतक के पैरों तले रौंदे गए।
महाराणा ने हर उस सिर को काट दिया जो उनके और मानसिंह के बीच में आया। फिर आया बहलोल खान मुग़लों का शक्तिशाली योद्धा । उसके साथ उसका अंतरंग साथी भी घोड़े पर था। इस आदमी ने महाराणा के सैनिकों को पहले भी मारा था। आज वो महाराणा की तलवार के आतंक से भयभीत होकर भागने लगा।
महाराणा ने दोनों को एक साथ चुनौती दी।
उन दोनों ने तलवार उठाई ताकि अपने आपको महाराणा के क्रोध से बचा सकें। लेकिन अफ़सोस! उनको देर हो गई। तीन सिर अगले ही पल ज़मीन पर लुढ़कने लगे। शक्तिशाली बहलोल खान, उसका तलवारबाज साथी और घोड़े का सिर - उनके शरीर से अलग हो गए, महाराणा के एक ही वार में!
हर कोई दम साधे था। एकदम सुई पटक सन्नाटा छा गया!
कोई इतनी ज्यादा ताक़त से कैसे प्रहार कर सकता है?
'हर हर महादेव'! - महाराणा की दहाड़ गूंजी।
शुरुआत अल्ला-हु-अकबर से हुई थी - अंत 'हर हर महादेव' से हुआ।
मुग़ल आतंकित हो गए थे।
गद्दार तक पहुंचने का रास्ता एक दम से साफ़ हो चुका था।
अगला शिकार, मानसिंह, ठीक उनके सामने था।
परिणाम
अगले बीस साल तक मुग़ल सिपाही यही बहस करते थे कि महाराणा प्रताप कोई सामान्य इंसान नहीं बल्कि शैतानी ताक़त धारी कोई प्रेत है।
अकबर के सेनानायक चित्तौड़ के क्षेत्र में अपनी तैनाती से बचते थे। एक अधिकारी नौकरी छोड़कर फ़कीर बन गया।
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चित्तौड़ ने मुग़ल शासन का इतना
नुकसान किया कि मुगलों के संसाधन विद्रोह से निपटने में ही खर्च होने लगे और देश
के किसी न किसी हिस्से में विद्रोह भड़कते ही रहे जो कि मुग़ल शासन झेल नहीं सका
और रेत के किले की तरह भरभराकर ढेर हो गया।
अकबर और उसके जैसे सैकड़ों जिंदगी भर डरावने सपनों से उठ कर जागते रहे। मानसिक आघात के कारण हुआ तनाव जाता ही नहीं था। तनाव दूर करने के लिए अफीम लेने के बावजूद हर रात अकबर अपने बिस्तर में पेशाब करता देता था। उस शक्तिशाली तलवार ने अकबर के साम्राज्य में ऐसा स्थाई छेद किया कि कुछ पीढ़ियों के बाद मुग़ल सुलतान मराठाओं की पेंशन पर पल रहे थे। कल मैंने एक मुग़ल राजकुमार को इटावा स्टेशन पर भीख मांगते हुए देखा - जिसने अकबर 'महान' की पेंटिंग अपने हाथ में पकड़ रखी थी।
अब क्या?
आप इस कहानी को अपने बच्चों को सुनाएं, उनके अंदर से गुलामी की भावना समाप्त होगी। वे किसी के गुलाम नहीं
बनेंगे और आतंक को समाप्त करने के तरीके भी जानेंगे।