पद्मावती - एक सत्य कथा

पद्मावती - एक सत्य कथा

 

तारिख : सन १३०३ के आसपास

स्थान - चित्तौड़ की बाहरी सीमा, अलाउद्दीन खिलजी का खेमा

 

पृष्ठभूमि

अलाउद्दीन खिलजी इस धरती पर पैदा हुए सबसे क्रूर इंसानो में से एक था। उसने अपने ससुर और चाचा की हत्या करके गद्दी हासिल की थी और उनके सिर को भाले की नोंक पर रख कर पवित्र रमजान के महीने में दिल्ली में प्रवेश किया था।

'महान' अकबर की तरह ही वो भी अपने आप को पैगंबर समझता था और काजियों

को मजबूर करता था कि वो उसकी सनक भरी कामुक हरकतों को धार्मिक मान्यता दें। उसने जितने भी बलात्कार और हत्याएं की हैं उनकी सानी सिर्फ उन हत्याओं, बलात्कारों की क्रूरता से ही दी जा सकती है। दूसरे सुल्तानों की तरह ही वो भी जवान लड़कों के साथ व्यभिचार करना पसंद करता था। मलिक काफूर नाम का बच्चा उसका सेक्स पार्टनर था। जो बड़ा होकर उसका सेनापति बना। (बाद में मलिक कफूर ने खिलजी और उसके परिवार को ही मार डाला था।)

पैगम्बर खिलजी का नाम इतिहास में मुसलमानों के सबसे बड़े कातिल (एक ही दिन में ३०,०००) और उनकी औरतों के बलात्कारी के रूप में जाना जाएगा और फिर भी वो मुसलमानों की नज़र में उनका 'हीरो' है!

भारत में हमेशा से मूों और गद्दारों की भरमार रही है और इन्हीं मूर्ख गद्दारों के कारण अलाउद्दीन, रणथम्भोर के राजा हमीरदेव जैसे बहादुरों को हरा सका, सोमनाथ जैसे कई हज़ार मंदिरों को लूट सका, गुजरात पर कब्जा कर सका और अब मेवाड़ जीतना चाहता था।

उसने चित्तौड़ (मेवाड़) के बाहर एक भारी सेना लेकर डेरा डाल दिया और राणा रतन सिंह को बातचीत के लिए एक दोस्त की तरह बुलावा भेजा। भारत के लोगों ने हमेशा से ही कमीने लोगों पर भरोसा करने की भारी कीमत चुकाई है। ऐसे नीच लोग जो अपने बाप के भी सगे नहीं थे, वो किसी और के क्या सगे होंगे? फिर भी भारतीय लोग यह मानते रहे हैं कि पश्चिम से आने वाले हमलावर भी भारतीय लोगों जैसे सभ्य सोच वाले होंगे और आज भी हम इसी धोखे में रह रहे हैं।

राणा रतन सिंह ने भी अलाउद्दीन खिलजी पर भरोसा किया और उससे बात करने चले गए। अलाउद्दीन ने अपनी असली औकात दिखाते हुए उनका अपहरण कर लिया और राणा की रिहाई के बदले में अपनी मांगें पेश कीं। ये वही मांगें थीं जो गोरी से लेकर खिलजी और अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक हर सुलतान ने बिना किसी अपवाद के पेश की थीं, “अपना सारा सोना और औरतें हमारे हवाले कर दो

हर आतंकवादी जिसने भारत पर हमला किया वो एक नीच दुराचारी और बलात्कारी था - अल कायदा के ओसामा या आईएसआईएस के बगदादी से भी बदतर।

(रानी पद्मिनी को शीशे में देखने की मांग और राजपूतों द्वारा इस मांग को पूरा किए जाने की कहानी एक शर्मनाक झूठ और मिथ्या है जो कि सिर्फ मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत कविता की उपज है। जिस में कोई भी ऐतिहासिक सच्चाई नहीं है

और हम भारतीय इतने मूर्ख हैं कि हम सही और गलत की समझ भी खो बैठते हैं जब हमारे सामने कला और संगीत के नाम पर कुछ भी परोस दिया जाता है। बॉलीवुड के बड़े पर्दे की संगीतमई चकाचौंध से काल्पनिक बातें सत्य का स्थान ले लेती है ! बहादुर योद्धाओं ने हमारी खुशहाली के लिए अपनी जान तक दे दी और ये कायर भांड़ कलाकार उनके बलिदानों से पैसा बना रहे हैं!)

मेवाड़ के राजपूतों ने अगली सुबह स्त्रियों को पालकी में भेजने की मांग स्वीकार कर ली।

 





परिस्थिति

भोर का समय - अलाउद्दीन खिलजी ने सारी योजना तैयार कर ली है और अपने सैनिकों को निर्देश दे दिया है। उनको पालकियों की संख्या गिननी है और कहारों को वहां से चले जाने को कहना है अगर कोई चालबाजी करे तो उसे मार दो। फिर हर एक औरत को पालकी से निकाल कर उनकी खूबसूरती और ओहदे के अनुसार पंक्ति में खड़ा कर दिया जाए। रानी पद्मिनी को सबसे आगे रखा जाए और सबको अलाउद्दीन खिलजी के सामने पेश किया जाए - वो मसीहा जिसने महान सिकंदर की तरह पूरी दुनिया को जीतना है।

पालकियां भोर होने से पहले ही आ गईं लेकिन इससे पहले की कहार वापस जाते, राजपूत स्त्रियां बाहर आ गईं और तभी वहां अफरा-तफरी मच गई। दरअसल वो स्त्रियां नहीं थीं बल्कि स्त्रियों के वेश में पालकियों में राजपूत सैनिक थे। बाहर आते ही उन्होंने उन बलात्कारियों को गाजर मूली की तरह काटना शुरू कर दिया।

बादल के नेतृत्व में राजपूतों की एक टुकड़ी ने राणा रतन सिंह को खोजने के लिए एक के बाद एक तम्बू उजाड़ने शुरू कर दिए और दूसरा समूह बादल के चाचा गोरा की अगुवाई में छावनी के मध्य की तरफ खिलजी को खोजने के लिए भागा।

बादल ने राणा को ढूंढ़ निकाला और उनके बंधन खोल दिए। उसने गोरा को संकेत दिया और आखिरी प्रणाम किया। वे दोनों जानते थे कि यह उनकी आखिरी मुलाकात

बादल की टुकड़ी तेजी से राणा के साथ किले की तरफ वापस हुई। उनके पास अगली योजना के लिए बहुत कम समय था।

इसी बीच गोरा ने अनगिनत हाथों और सिरों को काट गिराया और रोशनी से भरपूर शाही तम्बू में घुस गया।

 

आगे क्या हुआ

अलाउद्दीन खिलजी गोरा के आगे बिस्तर में लेटा है। पूरी तरह नंगा। कुत्ते की तरह हांफता हुआ। एक औरत के शरीर पर आगे-पीछे कूदता हुआ और अपनी ताक़त दिखाते हुए उसके कपड़ों को फाड़ता हुआ। उस औरत को वासनामयी नज़रों से घूरता हुआ - जैसे कुत्ता हड्डी के टुकड़े को देखता है।

वो वहशी अपनी वहशियाना हरकत में इतना डूबा हुआ था कि बाहर के शोर-शराबे और चीख-चिल्लाहट को सामान्य भाव से ले रहा था या शायद यह कोलाहल वैसा ही था जैसा हर रात खिलजी के खेमे में आहों और उठा पटक के बीच होता था !

अलाउद्दीन ने ध्यान ही नहीं दिया कि कोई उसके इस बहादुरी भरे कारनामें को देख रहा है लेकिन उस बेचारी औरत ने परछाई में हलचल महसूस की और सचेत हो गई।

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और तभी

अलाउद्दीन यकायक चौंककर अपने बिस्तर से उछला। उसको एक हट्टे-कट्टे राजपूत के हाथों अपनी मौत नज़र आने लगी। उसकी वहशियाना हरकतों का अचानक से अंत हो गया।

अलाउद्दीन उस औरत के पीछे छिप गया। अब वो उस की ढाल थी। वो कमीना जानता था कि राजपूत मर जाएगा पर किसी औरत पर हाथ नहीं उठाएगा।

बहादुर सुलतान रो रहा था। वो नीचे से गीला था, ऊपर से गीला था, वो पूरी तरह से गीला था। वह अपने तम्बू में चारों तरफ भाग रहा था। वह उस औरत को हर समय ढाल बनाए हुए था। कभी अल्लाह को याद करता और कभी गोरा से रहम की भीख मांगता -या अल्लाह रहम कर रहम

जैसे ही वो तम्बू के द्वार पर पंहुचा उसने उस औरत को गोरा की तरफ धकेल दिया और अपनी जान बचा कर भागा। गोरा एक तरफ हटा ताकि वो औरत को स्पर्श न कर सके । वो अपने लक्ष्य से चूक गया।

गोरा को अहसास हुआ कि एक औरत की इज्ज़त की कीमत हज़ारों औरतों की इज़्ज़त से चुकानी पड़ेगी।

लेकिन वो कर ही क्या सकता था! ये सब कुछ चंद पलों में ही हो गया। वो एक हिन्दू राजपूत के इस मूल स्वाभाव से धोखा कैसे कर सकता था कि हर स्त्री को अपनी मां समझो, पराई स्त्री को छूना भी पाप है!

एक सुल्तान दूसरी स्त्रियों का बलात्कार करने के लिए लड़ता है और एक हिन्दू उन स्त्रियों की रक्षा करने के लिए लड़ता है।

उसके मन में विचार कौंधते रहे लेकिन बहुत देर हो गई थी, अलाउद्दीन के लिए भी।

इससे पहले कि वो सूअर तम्बू से बाहर भाग पाता उसके पिछवाड़े ने राजपूती तलवार का स्वाद चख लिया। गोरा की तलवार ने उसका पिछवाड़ा चीर दिया था। अलाउद्दीन के सिपाही तम्बू में घुसे तो अपने सुलतान को दर्द से बिलबिला कर भागते हुए देखा। नंगा और पिछवाड़े से खून टपकाते हुए।

गोरा ने बहादुरी से युद्ध किया और बहुतों को जहन्नुम भेज दिया। कई सिर गिरे, कई हाथ कटे, हर तरफ खून ही खून था।

उस महान नायक ने आखिरी बारजय एकलिंग जी" का उद्घोष किया और वीरता का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जिससे हज़ारों लोगों को प्रेरणा मिलती रहेगी - जब तक एक भी आतंकवादी इस दुनिया में जीवित रहेगा।

 

परिणाम - चित्तौड़

अलाउद्दीन ने अपनी सेना चित्तौड़ भेजी, संख्याबल में कम होने के बावजूद राजपूत अंतिम सांस तक लड़े। जब जिहादियों नेअल्ला-हु-अकबरके नारे के साथ अंदर प्रवेश किया तो उनको जलती हुई चिताएं और राख मिली।

वहां की सभी स्त्रियों ने जिहादियों का सेक्स गुलाम बनने की बजाए 'जौहर' करना ही उचित समझा। यह इतिहास का दूसरा जौहर था रणथम्भोर के बाद जो कि कुछ ही साल पहले हुआ था। यहां से सती प्रथा की शुरुआत हुई।

कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। हालांकि जिहादियों ने एक युद्ध जीत लिया था क्योंकि उनको गद्दारों की मदद मिल गई थी लेकिन बहादुर हिन्दुओं के खिलाफ वो ज्यादा दिन टिक नहीं पाए।

१३११ में चित्तौड़ को अलाउद्दीन से वापस छीन लिया गया।

 



परिणाम - खिलजी वंश

अलाउद्दीन खिलजी का घायल पिछवाड़ा उसको जिंदगी भर एक राजपूत की तलवार की याद दिलाता रहा। वो अब न तो चल-फ़िर पाता था न ही सीधा बैठ पाता था, न ठीक से सो पाता था, न किसी गुलाम को कुत्ते की तरह हवस का शिकार बना पाता था। अब वो एक बकरी बनकर रह गया था।

अब वो सैनिक कार्यवाहियों में भी हिस्सा नहीं ले सकता था और उसे अपने सेनापतियों को ही भेजना पड़ता था। उसका नपुंसक सेक्स गुलाम मलिक काफूर इसकी वजह से शक्तिशाली होता गया। अनिद्रा, घाव, और दर्द ने अगले दस सालों में अलाउद्दीन को विक्षिप्त कर दिया था।

मलिक काफूर ने १३१६ में पागल अलाउद्दीन की हत्या कर दी और उसके दो बेटों को अंधा कर दिया परन्तु खुद भी मारा गया।

वो गोरा की तलवार, वो राजपूतों की पालकियां, वो बादल की बहादुरी - खिलजी वंश की किस्मत को हमेशा के लिए सील बंद कर गए।

अगले २३० सालों तक किसी ने चित्तौड़ की तरफ आंख उठा कर भी देखने की हिम्मत नहीं की।

हालांकि ये मूर्खता फिर से मुग़लों के समय में की गई। लेकिन मियां लोगों की इस हिमाकत की कीमत इतनी ज्यादा थी कि पूरा मुग़ल साम्राज्य देश भर में उठे विद्रोह के कारण ध्वस्त हो गया।

आज बहुत से मुग़ल सुलतान इटावा रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते हुए मिल जाते हैं।

 

अगला कदम

ये कहानी अपने बच्चों को सुनाएं - वे किसी के गुलाम नहीं बनेंगे और आतंकवाद को खत्म करने का तरीका जानेंगे।


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